शीत लहर में भी देर रात तक कवि सम्मेलन में बरसा काव्य रस

हरदा। अंतराष्ट्रीय कवि स्व. माणिक वर्मा की स्मृति में स्थानीय बड़ा मन्दिर चौक पर देर रात कवि सम्मेलन में काव्य रस बरसा। शीत लहर के बीच देर रात तक श्रोताओं ने अपनी उपस्थिति दिखाते हुए कवियों का उत्साह बढ़ाया। कवियों ने भी हास्य के ठहाकों से खूब गुदगुदाया और ओज की कविताओं से प्रांगण को मंत्रमुग्ध कर दिया। छंद गुरुकुल के गुरु सक्सेना (सांड नरसिंहपुरी) के छन्दों ने सभी को आनन्दित कर दिया और कवि सम्मेलन को शिखर तक पहुँचाया। गुरु सत्यनारायण सत्तन के कुशल संचालन ने बढ़ती ठंड में भी श्रोताओं को बांधे रखा और जब उन्होंने अपनी कविता पैसा पैसा कैसा ये पैसा मंच पर सुनाई तो श्रोताओं की तालियों का महोत्सव हो गया।
कवि सम्मेलन के प्रारंभ में कार्यक्रम के अतिथि हरदा विधायक डॉ रामकिशोर दोगने,पूर्व मंत्री कमल पटेल,नगर पालिका अध्यक्ष भारती कमेड़िया, राजू कमेड़िया, आयोजक राजकुमार वर्मा व समस्त कवियों द्वारा स्वर की देवी वीणा वादिनी के समक्ष दीप प्रज्वलन किया। कार्यक्रम संयोजक लोमेश गौर, जयकृष्ण चांडक, शिरीष अग्रवाल व कपिल दुबे द्वारा अतिथियों व कवियों का स्वागत किया गया।
मालूम हो कि स्व माणिक वर्मा ऐसे कवि थे जिन्होंने अपनी कविताओं व तीखे व्यंग्यों से राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय स्तर पर हरदा को एक अलग पहचान दी। शुरुआत में डॉ अनु सपन के द्वारा सरस्वती वंदना की गई। बालकवि दुहित गौर ने अपने हास्य मुक्तक और छंद से सभी को गुदगुदाया। व्यंग्यकार राजेन्द्र गट्टानी ने अपनी व्यंग्य रचनाएं सुनाई। हास्य कवि मुकेश शांडिल्य व संजय खत्री ने अपनी हास्य रचनाओं से खूब तालियां बटोरी। वन्दना वर्मा दुबे ने अपने कविता पाठ में स्वर्गीय माणिक दादा को याद किया। वीर रस के कवि अशोक चारण ने अपने अंदाज में वीरता भरे छन्दों से सभी में वीरत्व का भाव भर दिया। उन्होंने जब मातृभूमि की वंदना अपने गीत के माध्यम से की तो सभी श्रोता झूम उठे और गीत गुनगुनाने लगे। ओज कवि कमलेश राजहंस ने ओज की कविताएं सुनाई। माणिक वर्मा के पुत्र राजकुमार वर्मा ने पिता के अंदाज में व्यंग्य सुनाए। उनकी व्यंग्य रचनाओं ने माणिक दादा की मंचों पर प्रस्तुति की यादें ताजा कर दी। श्रंगार रस में खूबसूरत अंदाज़ में अनु सपन द्वारा गजलें जब प्रस्तुत हुई तो पूरा प्रांगण मंत्रमुग्ध हो उठा। सभी साहित्यकारों को स्मृति चिन्ह भेंट किये गए। देर रात तक चले कवि सम्मेलन में सभी सुधी श्रोता उत्साह के साथ बैठे रहे और कवि सम्मेलन का आनन्द लिया।
कवियों ने क्या पढ़ा
हाथ में फकीरों के, साथ में अमीरों के, भाग्य की लकीरों के साथ साथ चलता है।
हिंसा से गोली से, मधुर मधुर बोली से, ठुमका ठिठोली से बहुत माल मिलता है।
ऐसा हो वैसा फिर चाहे जैसा हो, आता है आने दे, लक्ष्मी का सन्देशा है। युग जाने कैसा है पैसा ही पैसा है।
: सत्यनारायण सत्तन
टुन टुन लगती है काली रूप धरती है आई वो तूफान जैसी मेरी जिंदगानी में।
मेरी बीवी नदी में नहाने जब उतरी तो किनारे के लोग बोले गई भैंस पानी में।
: मुकेश शांडिल्य टिमरनी
आठ दिन पहले इसके पास एक ग्राहक आया था और किसी सब यात्रा में राम नाम सत्य करने के लिये एक पाव सच ले गया था। उसमें से भी बचा कर वापस दे गया था तुम ही रख लो हम इसका क्या करेंगे फिर ले जाएंगे जब कोई और मरेंगे।
: राजेन्द्र गट्टानी
पिता के काम से बढ़कर नहीं कोई काम होता है।
जिए मर्यादा का जीवन उसी का नाम होता है।
हमारे राम की पूजा जगत यूं ही नहीं करता।
पिता का दर्द जो समझे वही श्री राम होता है।
: बालकवि दुहित गौर
किसी को दबाया नहीं किसी को सताया नहीं अमृत बरसाने वाले हम इंदू हैं।
एक बार क्या कहेंगे हर्ष से हजार बार हिंदुस्तान है हमारा और हम हिन्दू हैं।
: गुरु सक्सेना सांड नरसिंहपूरी
मुश्किलों से हमें जूझना आ गया, हारते हारते जीतना आ गया।
पार होने को जी चाहता ही नहीं शुक्र है कि हमें डूबना आ गया।।
: डॉ अनुसपन
कौआ जब कोयल की बोली वोलने लगे और कोयल कऊआ की भाषा बोलने लगे तो समझ लेना कि चुनाव होने वाले हैं।
: राजकुमार वर्मा
जिसे शहीदों ने सींचा वो अपना वतन भी भूल गए।
हम अपनी धरती भूल गए और अपना गगन भी भूल गए।
: वन्दना वर्मा दुबे
समस्याए रोज नई ख़डी हो जाती है।
पैरो की पायल ही हथकड़ी हो जाती है।
हस्ती खेलती हुई अच्छी लगती थी आँगन मे।
पता नहीं क्यों बेटिया इतनी जल्दी बड़ी हो जाती है।
: संजय खत्री
नीड़ छोड़ कर पंछी के बच्चे यूँही अकुलाते हैं
पेड़ छोड़ने वाले फल चाकू से काटे जाते हैं
: अशोक चारण जयपुर
त्योहार पर बच्चे मेरे उपवास कर गये,
मैंने सभी को भूख से लड़ना सिखा दिया
: डा कमलेश राजहंस